ग्राम न्यायालय

ग्राम न्यायालय – स्वरूपन्याय प्रक्रिया एवं अपील

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       जिन राज्यों ने ग्राम न्यायालय के गठन की अधिसूचना अभी तक नहीं निकाली है उन राज्यों को निर्देश दिया है उनको सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि चार सप्ताह में इन न्यायालयों गठन कर लें. साथ ही उसने उच्च न्यायालयों को कहा है कि वे इस विषय में राज्य सरकार से परामर्श करके गठन की प्रक्रिया में गति लाएँ.

मामला क्या है?
  • अभी तक मात्र 11 राज्यों ने ही ग्राम न्यायालयों से सम्बंधित अधिसूचना निर्गत करने के लिए कदम उठाये हैं. कई राज्यों ने इन न्यायालयों का गठन तो कर लिया है पर ये सभी न्यायालय काम नहीं कर रहे हैं. केवल केरल, महाराष्ट्र और राजस्थान में ही ऐसे न्यायालय कार्यशील हैं.
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना में यह अपेक्षा थी कि 2,500 ग्राम न्यायालय गठित किये जाएँ. परन्तु अभी तक इस प्रकार के 208 न्यायालय ही देश में काम कर रहे हैं.
ग्राम न्यायालय क्या होते हैं?
  • देश के ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय तन्त्र को गति देने और उसे सुलभ बनाने के लिए ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 (Gram Nyayalayas Act, 2008) के अंतर्गत इन न्यायालयों का गठन करने का प्रावधान है.
  • यह अधिनियम अक्टूबर, 2009 से प्रभावी है.

ग्राम न्यायालय का स्वरूप
  • किसी ग्राम न्यायालय का अध्यक्ष न्यायाधिकारी कहलाता है जिसके पास वही शक्ति और वही वेतनमान-लाभ आदि होते हैं जोकि एक प्रथम श्रेणी के न्यायिक दंडाधिकारी के पास होते हैं.
  • न्यायाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार राज्य के उच्च न्यायालय के साथ परामर्श कर के करती है.
  • राज्य सरकार उच्च न्यायालय के साथ परामर्श करके इस न्यायालय के गठन की जो अधिसूचना निकालती है उसमें लिखा होता है कि इस न्यायालय का न्यायाधिकार किस क्षेत्र के ऊपर होगा.
  • यह न्यायालय चलंत न्यायालय बनकर अपने न्याय क्षेत्र में कहीं भी जाकर काम कर सकता है, परन्तु इसके लिए उसे पहले से जनसाधारण को सूचित करना होगा.
  • इस न्यायालय को व्यवहारिक और आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों पर न्यायाधिकार होगा.
  • इस न्यायालय का धन विषयक न्यायाधिकार सम्बंधित उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाता है.
  • इन न्यायालयों को ऐसे कुछ साक्ष्य स्वीकार करने की शक्ति मिली हुई है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत अन्यथा स्वीकार्य नहीं होते.
न्याय प्रक्रिया:-
  • व्यवहार मामलों में ग्राम न्यायालय कुछ ऐसी विशेष प्रक्रियाओं का अनुसरण कर सकता है जो न्याय के हित में उचित एवं तर्कसंगत हों.
  • ग्राम न्यायालय वाद पर विचार करने के पहले इस बात पर बल देता है कि विवाद का निपटारा आपसी सहमति से हो जाए.
अपील:-
  • आपराधिक मामले : ग्राम न्यायालय के किसी न्याय निर्णय के विरुद्ध अपील सत्र न्यायालय में हो सकती है.
  • व्यवहार मामले : ऐसे मामलों पर इस न्यायालय द्वारा किये गये न्याय निर्णय पर अपील जिला न्यायालय में की जा सकेगी.
माहात्म्य:-

       ग्राम न्यायालयों का गठन न्यायिक सुधार के लिए एक अत्यावश्यक कार्य है क्योंकि इससे जिला न्यायालयों में दायर वादों की संख्या घटेगी. अनुमान तो यह है कि इसके चलते जिला न्यायालयों में लंबित वादों के मामले 50% तक घट सकते हैं.

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