भारत का भूगोल -भाग 5

भारत के तटीय मैदान (Coastal Plains of India)
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भारत के तटीय मैदान (Coastal Plains of India):-
        यह भारतीय तट रेखा के साथ-साथ (प्रायद्वीपीय पर्वत श्रेणियों तथा समुद्र तट के मध्य) फैला हुआ क्षेत्र है, जो पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों तटों के साथ संलग्न है।

पश्चिमी तटीय मैदान:-
  • ये पूर्वी तटीय मैदान की तुलना में आर्द्र तथा संकरा है। सबसे पश्चिमी भाग का रण कच्छ कहलाता है, जो उत्तरी गुजरात के 21500 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। यह क्षेत्र सामुद्रिक आच्छादन के लिए खुला हुआ है तथा गहरे रंग की गाद (Dark Silt) एवं नमक की परतों से संघटित है। दमन से गोआ तक का तटीय मैदान कोंकण तट (500 किमी. लम्बा) कहलाता है, जो सामान्यतः सपाट है तथा बेसाल्ट चट्टानों से बना है। 
  • कर्नाटक तट गोआ से कैन्नौर तक 525 किमी. लंबाई में फैला हुआ है। इस पट्टी में गोआ के निकट एगुंडा तथा मर्मगाव अंतरीपों के मध्य कई महत्वपूर्ण ज्वारनदमुखों का निर्माण हुआ है। कैन्नोर से कन्याकुमारी तक 500 किमी. लम्बा केरल तट विस्तृत है। इस भाग में लैगूनें अथवा पश्चनल (कयाल) पाये जाते हैं, जैसे-अस्थामुड़ी एवं वेम्बनाड आदि।

पूर्वी तटीय मैदान:-
  • ये मैदान पश्चिमी तटीय मैदानों की अपेक्षा अधिक चौड़े हैं तथा यहां मुख्य नदियों के सुविकसित डेल्टा पाये जाते हैं। उत्तर का दक्षिणी-पश्चिमी मानसून क्षेत्र तथा दक्षिण का उत्तरी-पूर्वी मानसून क्षेत्र का जलवायविक संक्रमण पूर्वी मैदान के दो विभिन्न चरणों के जलोढ़ लक्षणों की आश्चर्यजनक विभिन्नताओं को जन्म देता है। ये तटीय मैदान कोरोमंडल तट कहलाते हैं तथा सीधी खड़ी पहाड़ियों व् कगारों की अनियमित रेखा द्वारा, जो जलोढ़ों एक मोटी परत द्वारा आवृत्त है, घिरे हैं। ये रेखा विशेषतः महानदी, गोदावरी, कावेरी कृष्णा के डेल्टाई शंकुओं में पायी जाती है।
  • पूर्वी तटीय मैदान की सबसे दक्षिणी पट्टी तमिलनाडु मैदान कहलाती है, जो 675 किमी. लंबी है। मध्य पट्टी को आंध्र प्रदेश मैदान कहते हैं, जो पुलीकट से बेहरामपुर तक फैली हुई है। इस क्षेत्र में उपजाऊ कृष्णा-गोदावरी डेल्टा तथा कोलेरू झील स्थित है। उत्तर के उत्कल मैदान (400 किमी. लंबा) में महानदी डेल्टा तथा चिल्का झील मौजूद हैं।

तटीय मैदान का महत्व:-
  • पर्याप्त प्राकृतिक पोताश्रयों के अभाव के बावजूद तटीय मैदान प्राचीन काल से ही व्यापार-वाणिज्य का केंद्र रहे हैं। इन मैदानों में लगभग 12 बड़े तथा अनेक छोटे बंदरगाह स्थित हैं।
  • ये मैदान कृषि की दृष्टि से अत्यंत उपजाऊ हैं। कृष्णा-गोदावरी डेल्टा ने चावल के उत्पादन में हरित क्रांति का नेतृत्व किया है तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में विशिष्ट प्रकार की फसलें उगायी जाती हैं।
  • तटीय मैदान मत्स्यन के महत्वपूर्ण केंद्र हैं तथा निर्यात के माध्यम से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं। अपने आर्थिक महत्व तथा सुगम संचार की सुविधाओं के कारण तटीय मैदानों ने सघन मानवीय अधिवास को आकर्षित किया है।

भारतीय मरुस्थल (Indian Desert)

  • भारत के मरुस्थल के अंतर्गत राजस्थान का बड़ा हिस्सा आता है तथा यह सिंध (पाकिस्तान) तक फैला हुआ है, तथा यह थार के मरुस्थल के तौर पर जाना जाता है। यह अरावली पर्वत श्रृंखला के उत्तर-पश्चिम में है।
  • ऐसा विश्वास है कि मेसोजोइक काल में यह हिस्सा समुद्र के भीतर था, जो ब्रह्मसार (जैसलमेर के निकट) के आस-पास समुद्री निक्षेपण से बना था तथा इसके प्रमाण आकल में जीवाश्म पार्क में मौजूद हैं।
  • समग्र रूप में, थार मरुस्थल चुपचाप तरीके से उत्तर में सिंधु मैदान की तरफ तथा दक्षिण में कच्छ के रन की तरफ बढ़ता है। हालांकि आंतरिक चट्टान संरचना का विस्तार प्रायद्वीपीय पठार तक है। यहां की धरातलीय विशेषताओं का निर्माण बेहद शुष्क दशाओं के परिणामस्वरूप भौतिक अपक्षय तथा पवन कार्य द्वारा किया गया है। धरातल की असमरूपता मुख्य रूप से देशांतरीय अर्गों तथा बरखानों के कारण है। 
  • मरुस्थल के दक्षिण के अर्ग उत्तर के अगों की तुलना में ऊंचे हैं। अर्गों एवं नखलिस्तानों (अधिकतर दक्षिणी भाग में) में स्थान परिवर्तन के बावजूद, मरुस्थल में मशरूम चट्टानों जैसे लक्षण परिलक्षित होते हैं। सामान्यतः शुष्क क्षेत्र की मिट्टी, बनावट में रेतीली तथा चिकनी बलुआ होती है। निरंतरता और गहराई स्थलाकृतिक विशेषताओं के अनुसार बदल जाती है। निम्न स्थानों की दोमट मिट्टी बेहद भारी होती है। इनमें से कुछ मिट्टियां बेहद उच्च प्रतिशतता में निम्न क्षितिजों में घुलनशील नमक रखती हैं, जिससे कुओं में पानी जहरीला हो जाता है।
  • इस विशाल भारतीय मरुस्थल में एक आंतरिक अपवाह क्षेत्र है जिसमें नदी समुद्र तक नहीं पहुंच पाती अपितुरेत में ही विलीन हो जाती है। इस क्षेत्र की एकमात्र बड़ी नदी लूनी आंतरिक अपवाह का बेहद अच्छा उदाहरण है।
  • विविधतापूर्ण प्राकृतिक वास एवं पारिस्थितिकी तंत्र के कारण, इस शुष्क क्षेत्र में वनस्पति, मानव संस्कृति एवं पशु जीवन अन्य वैश्विक मरुस्थलों की तुलना में बेहद समृद्ध है। यहां पर लीजार्ड एवं सांपों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं लेकिन इनमें से कई संकटापन्न हैं। इस मरुस्थल में कुछ दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियां बड़ी मात्रा में पाई जाती हैं। इनमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, ब्लैक बक, इंडियन गैजली और भारतीय जंगली गधा कच्छ के रन में पाए जाते हैं। इन जीवों में उम्दा उत्तरजीविता की रणनीति होती हैं। इस बात पर गौर किया जा सकता है कि इस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण, घासभूमि का फसल योग्य भूमि में बदलना बेहद धीमा रहा है और स्थानीय समुदाय, विश्नोई द्वारा जीवों को सुरक्षा प्रदान करना भी प्रजातियों के जीवित रहने का एक कारक है। थार मरुस्थल रेड फॉक्स और जंगली बिल्ली की उप-प्रजातियों का भी निवास स्थल है।
  • यह क्षेत्र मरुस्थल के 141 आप्रवासी और स्थानीय पक्षियों की प्रजातियों के लिए स्वर्ग है।

 

पश्चिमी तटीय मैदान और पूर्वी तटीय मैदान के बीच अंतर

पश्चिमी तटीय मैदान

पूर्वी तटीय मैदान

यह मैदान पश्चिमी घाट और अरब सागर तट के बीच स्थित है।

यह मैदान पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के तट के बीच अवस्थित है।

इस मैदान की औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है, जिससे यह संकरा है।

तुलनात्मक रूप से यह 80-100 किमी. की औसत चौड़ाई के साथ चौड़ा मैदान है।

यहां पर लघु एवं तीव्र धाराओं का अपवाह तंत्र है जो डेल्टा बनाने में असमर्थ हैं।

यहां पर बड़ी नदियां जैसे महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी बहती हैं, जो डेल्टा बनाती हैं।

यहां बड़ी संख्या में लैगून हैं।

तुलनात्मक रूप से कम लैगून हैं।

यहां तटीय सीमा पर वृहद जगह होती है जो पत्तनों का निर्माण करती है।

यहां अधिकतर तटसीमा सीधी तथा कम चौड़ी है जिससे अच्छे पत्तनों का अभाव है।

 


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