भारतीय अपवाह प्रणाली
(Indian drainage system) Part-2
महत्वपूर्ण नदी बेसिन |
||
नदियां |
लम्बाई (किमी. में) |
अपवाह क्षेत्र (वर्गकिमी.) नदी में संभाव्यनिक्षेपण (वर्ग किमी.) |
सिंधु (भारत में) |
1,114 |
321,289 |
गंगा (भारत में) |
2,525 |
861,452 |
ब्रह्मपुत्र (भारत में) |
916 |
194,413 |
बराक और मेघना तक बहने वाली अन्य नदियां |
41,723 |
|
साबरमती |
371 |
21,674 |
माही |
585 |
34,842 |
नर्मदा |
1,312 |
98,796 |
तापी |
724 |
65,145 |
ब्राह्मणी और बैतरिणी |
799+365 |
39,033+12,789 |
महानदी |
851 |
141,589 |
गोदावरी |
1,465 |
312,812 |
कृष्णा |
1,401 |
258,948 |
पेन्नार |
597 |
55,213 |
कावेरी |
800 |
81,155 |
सुवर्णरेखा |
395 |
19,296 |
पूर्व-पश्चिम दोनों दिशाओं में बहने वाले मध्यमनदी बेसिन |
248,505 |
|
कुल |
2,776,589 |
प्रायद्वीपीय नदियां:-
- भारतीय प्रायद्वीप में अनेक नदियां प्रवाहित हैं। इनमें से अधिकांश परिपक्व अवस्था को प्रदर्शित करती हैं, विशेषकर घाटियों के निम्नवर्ती क्षेत्र की नदियां। मैदानी भाग की नदियों की अपेक्षा प्रायद्वीपीय भारत की नदियां आकार में छोटी हैं। यहां की नदियां अधिकांशतः मौसमी हैं और वर्षा पर आश्रित हैं। वर्षा ऋतु में इन नदियों के जल-स्तर में वृद्धि हो जाती है, पर शुष्क ऋतु में इनका जल-स्तर काफी कम हो जाता है। इस क्षेत्र की नदियां कम गहरी हैं, परंतु इन नदियों की घाटियां चौड़ी हैं और इनकी अपरदन क्षमता लगभग समाप्त हो चुकी है। यहां की अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, कुछ नदियां अरब सागर में गिरती हैं और कुछ नदियां गंगा तथा यमुना नदी में जाकर मिल जाती हैं। प्रायद्वीपीय क्षेत्र की कुछ नदियां अरावली तथा मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन या खंभात की खाड़ी में गिरती हैं।
पूर्वी प्रवाह वाली नदियां:-
जो नदियां पूर्व की ओर प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, उनमें कुछ प्रमुख हैं-
- महानदी: 858 किलोमीटर लंबी अपवाह प्रणाली वाली महानदी नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के रायपुर जिले की अमरकंटक पहाड़ियों का सिहावा नामक स्थल है। यहां से पूर्व व दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती हुई महानदी ओडीशा में कटक के निकट बड़े डेल्टा का निर्माण करती है। सियोनाथ, हसदेव, मंड और डूब उत्तर की ओर से आकर महानदी में मिलती हैं। तेल नदी बायीं ओर से इसकी प्रमुख सहायक नदी है। संभलपुर के समीप महानदी एक विशाल नदी का रूप धारण कर लेती है। महानदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 1,32,090 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 53 प्रतिशत मध्यप्रदेश में और 46 प्रतिशत ओडीशा में पड़ता है।
- गोदावरी: प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियों में गोदावरी सबसे बड़ी नदी है और भारत में विस्तार की दृष्टि से दूसरी सबसे बड़ी नदी है। गोदावरी नदी को वृद्ध गंगा और दक्षिण गंगा की संज्ञा भी दी जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 1,465 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र 3,13,839 वर्ग किलोमीटर है। पश्चिमी घाट में नासिक की पहाड़ियों में त्रम्बक नामक स्थल से इस नदी का उद्गम होता है। यहां से दक्षिण-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई और अनेक छोटी नदियों को अपने में समाहित करती हुई यह आगे बढ़ती है। पूर्वी घाट में थोड़ी दूर तक तंग घाटी बनाने के बाद यह नदी बहुत फैल जाती है। राजमुंद्री के समीप गोदावरी नदी की चौड़ाई 2,750 मीटर हो जाती है। उत्तर में इसकी प्रमुख सहायक नदियां प्राणहित, इंद्रावती, शबरी, मंजरा, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, ताल, मुला, प्रवरा आदि हैं। दक्षिण में मंजीरा इसकी मुख्य सहायक नदी है। धवलेश्वरम् के बाद गोदावरी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है- पूर्वी शाखा गौतमी गोदावरी के नाम से और पश्चिमी शाखा वशिष्ठ गोदावरी के नाम से प्राणहित होती है। इसके बीच में एक और नदी वैष्णव गोदावरी के नाम से प्रवाहित होती है। गोदावरी की ये तीनों शाखाएं क्रमशः येनम, नरसापुर और नागरा नामक स्थलों पर बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती हैं।
- कृष्णा: प्रायद्वीपीय भारत में प्रवाहित होने वाली दूसरी सबसे बड़ी नदी कृष्णा है। पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के उत्तर में 1,327 मीटर की ऊंचाई पर कृष्णा नदी का उद्गम स्थल है। इस नदी की कुल लंबाई 1400 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र 2,59,000 वर्ग किलोमीटर है। कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगभद्रा और मूसी कृष्णा की प्रमुख सहायक नदियां हैं। ये सभी सहायक नदियां गहरी घाटियों में बहती हैं और वर्षा के दिनों में जल से परिपूर्ण होती हैं। भीमा और तुंगभद्रा के अतिरिक्त अन्य नदियों का जल स्तर शुष्क मौसम में काफी कम हो जाता है। तुंगभद्रा, कृष्णा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। इस नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 71,417 वर्ग किलोमीटर है। तुंगभद्रा का निर्माण दो श्रेणियों- तुंग और भद्रा के मिलन से होता है। तुंगभद्रा का उद्गम स्थल कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में पश्चिमी घाट में 1,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगामूल नामक चोटी है। तुंगभद्रा 640 किलोमीटर की लंबाई पूर्ण करने के बाद कुर्नूल के समीप कृष्णा में समाहित हो जाती है। भीमा नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 76,614 वर्ग किलोमीटर है। यह नदी दक्षिण महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में बहती है तथा विजयवाड़ा के नीचे डेल्टा का निर्माण करती है। कृष्णा नदी डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है और कृष्णा नदी का डेल्टा गोदावरी के डेल्टा से मिला हुआ है।
- स्वर्ण रेखा: इस नदी का उद्गम स्थल झारखण्ड में छोटानागपुर पठार पर रांची के दक्षिण-पश्चिम में है। इस नदी का प्रवाह सामान्यतः पूर्वी दिशा में है। स्वर्णरेखा नदी का विस्तार मुख्य रूप से झारखण्ड के सिंहभूम, ओडीशा के मयूरभंज तथा पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बीच है। स्वर्णरेखा नदी की कुल लंबाई 395 किलोमीटर है (कहीं-कहीं इसकी लंबाई 433 किलोमीटर भी बतायी जाती है) और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 19,500 वर्ग किलोमीटर है।
- ब्राह्मणी: ब्राह्मणी नदी का निर्माण कोयल और सांख नदियों के मिलन से होता है। ब्राह्मणी नदी का उद्गम स्थल भी वहीं है, जहां से स्वर्णरेखा नदी निकलती है। कोयल और सांख नदियां गंगपुर के समीप एक-दूसरे से मिलती हैं। ब्राह्मणी नदी का प्रवाह बोनाई, तलचर और बालासोर जिले में है। बंगाल की खाड़ी में गिरने से ठीक पूर्व वैतरणी नदी, ब्राह्मणी से मिलती है। ब्राह्मणी नदी की कुल लंबाई 705 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 36,300 वर्ग किलोमीटर है।
- वैतरणी: इस नदी का उद्गम स्थल ओडीशा के क्योंझर पठार पर है। वैतरणी नदी की कुल लंबाई 333 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में लगभग 19,500 वर्ग किलोमीटर है।
- पेन्नार: इस नदी का उद्गम कोलार जिला (कर्नाटक) से होता है। चित्रावती और पापाग्नि इसकी मुख्य सहायक नदियां हैं। इस नदी की दो शाखाएं हैं- उत्तरी पेन्नार 560 किलोमीटर लंबी है और कुड़प्पा, अनंतपुर के मार्ग से प्रवाहित होती हुई नेल्लूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। दक्षिणी पेन्नार 620 किलोमीटर लम्बी है और तमिलनाडु में सेलम और दक्षिणी अर्काट जिलों में प्रवाहित होती हुई कुलाडोर के उत्तर में बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।
- कावेरी: इस नदी का उद्गम कर्नाटक के कुर्ग जिले में 1,341 मीटर की ऊंचाई से होता है। मैदानी भाग में अवतरित होने के पूर्व यह नदी मैसूर के पठार में प्रवाहित होती है। यह नदी दक्षिण-पूर्व दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में 805 किलोमीटर की लंबाई में प्रवाहित होती है। उत्तर की ओर हेमावती, लोकपावनी, शिम्सा और अरकावती इअकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं, जबकि दक्षिण की ओर इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं- लक्ष्मणतीर्थ, कबबीनी, स्वर्णवती, भवानी और अमरावती। तमिलनाडु में प्रवेश करने के पूर्व कावेरी को मेका दाटु, आडु, थंडम कावेरी आदि नामों से जाना जाता है। श्रीरंगम् के पास यह नदी उत्तरी कावेरी और दक्षिणी कावेरी के नाम से दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। बंगाल की खाड़ी में गिरने के पूर्व कावेरी विशाल डेल्टा का निर्माण करती है। इस डेल्टा का आरंभ तिरुचिरापल्ली से 16 किलोमीटर पूर्व होता है। कावेरी का डेल्टा लगभग 31,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है,जिसमें से लगभग 55 प्रतिशत तमिलनाडु, 41 प्रतिशत कर्नाटक और 3 प्रतिशत केरल के क्षेत्र में आता है। कावेरी नदी अपने प्रवाह मार्ग में शिवसमुद्रम और होकेनागल नामक दो विशाल जलप्रपातों का निर्माण करती है। प्राचीन काल का प्रसिद्ध कावेरीपट्टनम् बंदरगाह कावेरी नदी के तट पर ही था।
- ताम्रपणीं: इस नदी का उद्गम पश्चिमी घाट के अगस्त्यमलय ढाल (1,838 मीटर) से होता है। यह नदी तिरुनेवेल्ली जिले से शुरू होकर समाप्त भी यहीं होती है। प्राचीन पाण्ड्य राज्य की राजधानी कोकई किसी समय आठ किलोमीटर तक ताम्रपर्णी नदी के अंदर चली गई थी। इस नदी की कुल लंबाई 120 किलोमीटर है। ताम्रपर्णी नदी कल्याणतीर्थम नामक स्थल पर 90 मीटर ऊंचे जलप्रपात का निर्माण करती है। यह नदी मन्नार की खाड़ी में गिरती है।
पश्चिमी प्रवाह वाली नदियां:-
प्रायद्वीपीय भारत में कुछ नदियां ऐसी हैं, जो पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती हुई अरब सागर में गिरती हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैं-- नर्मदा: इस नदी का उद्गम स्थल मैकाल पर्वत की 1,057 मीटर ऊंची अमरकंटक चोटी है। प्रायद्वीप की पश्चिमी प्रवाह वाली नदियों में नर्मदा सबसे बड़ी है। इसके उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत् है। नर्मदा हांड़ियां ओर मांधाता के बीच तीव्र गति से प्रवाहित होती है और जलप्रपात का निर्माण करती है। मध्यप्रदेश में जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानों और कपिलधारा प्रपात का सुंदर दृश्य देखने को मिलता है। कपिलधारा जलप्रपात को धुंआधार के नाम से जाना जाता है और इसका निर्माण नर्मदा नदी करती है। बंजर, शेर, शक्कर, तवा, गंवाल, छोटी तवा, हिरन आदि नर्मदा की सहायक नदियां हैं। नर्मदा की कुल लंबाई 1,312 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र 93,180 वर्ग किलोमीटर है। भड़ौंच के निकट यह खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है।
- ताप्ती (तापी): इस नदी का उद्गम स्थल बेतूल जिले का 792 मीटर ऊंचा मुल्ताई नामक स्थल है। यह प्रायद्वीप की पश्चिमी प्रवाह वाली दूसरी सबसे बड़ी नदी है। ताप्ती या तापी नदी की कुल लंबाई लगभग 724 किलोमीटर है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 64,750 वर्ग किलोमीटर है। इसकी मुख्य सहायक नदियां हैं- लावदा, पटकी, गज्जल, बोदक, अम्भोरा, खुरसी, खांडू, कपर, सिप्रा, इतौली, कखेकरी, पूर्ण, भोकर, सुकी, मरे, हरकी, मनकी, गुली, अरुणावती, गोमई, नाथुर, गुरना, बोरी, पंझरा आदि। नर,अदा के समानान्तर प्रवाहित होती हुई सतपुड़ा के दक्षिण में सूरत के समीप एक एस्चुअरी का निर्माण करने के बाद तपती नदी अरब सागर में गिर जाती है।
- लूनी: इसका उद्गम स्थल राजस्थान में अजमेर जिले के दक्षिण-पश्चिम में अरावली पर्वत का अन्नासागर है। यह नदी 450 किलोमीटर लम्बी है और अरावली के समानांतर पश्चिम दिशा में बहती है। अजमेर में पुष्कर झील से निकलने वाली सरसुती इसकी मुख्य सहायक नदी है। लूनी नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 37,250 वर्ग किलोमीटर है। यह नदी कच्छ के रन के उत्तर में साहनी कच्छ में समाप्त हो जाती है।
- साबरमती: इस नदी का उद्गम स्थल राजस्थान के उदयपुर जिले में अरावली पर्वत पर स्थित जयसमुद्र झील है। साबरमती प्रायद्वीप में प्रवाहित पश्चिम प्रवाह वाली नदियों में तीसरी सबसे बड़ी नदी है। सावर और हाथमती इसकी मुख्य सहायक नदियां हैं। साबरमती नदी की कुल लंबाई लगभग 330 किलोमीटर (कहीं-कहीं 416 किलोमीटर भी) है और इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र 21,674 वर्ग किलोमीटर है।
- माही: इस नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में होता है और यह नदी धार, रतलाम तथा गुजरात में प्रवाहित होती हुई अंततः खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। यह नदी 560 किलोमीटर लंबी है, जिसमें से अंतिम 65 किलोमीटर ज्वार के रूप में है।
हिमालयीय और प्रायद्वीपीय नदियों में अंतर:-
- प्रायद्वीपीय नदियां पूर्ण विकसित अवस्था की हैं, जबकि हिमालयीय नदियां अभी भी नए सिरे से अपना विकास कर रही हैं।
- प्रायद्वीपीय नदियों की अपरदन क्षमता लगभग समाप्त हो चुकी है और इसलिए वे अब अपना मार्ग-परिवर्तन करने में अक्षम हैं, जबकि हिमालयीय नदियों की अपरदन क्षमता काफी तीक्ष्ण है और ये अपना मार्ग-परिवर्तन करने में भी दक्ष हैं।
- उत्तर भारत की अनेक नदियां ऐसी हैं, जो हिमालय पर्वतश्रेणियों से भी पुराने काल की हैं। हिमालय पर्वत ज्यों -ज्यों उभरता गया, वैसे-वैसे ये नदियां अपनी घाटी को गहरी करती हुई पूर्ववत् प्रवाहित होती रहीं। उत्थान और नदियों के कटाव की क्रियाएं साथ-साथ चलती रहीं और इसका परिणाम यह हुआ कि नदियों की प्रवाह की गति नियमित रही। दूसरी ओर, प्रायद्वीपीय नदियों का उद्गम प्राचीन पठारों से होता है, जो बहुत पहले ही अपनी संपूर्ण क्षमता का प्रदर्शन कर चुकी हैं। प्रायद्वीप की नदियां अपने आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं और निचली घाटियों में इनकी गति लगभग समाप्त हो जाती है।
- हिमालयीय नदियां अपने तीव्र प्रवाह, श्रेणियों के समानांतर आरंभिक प्रवाह और बाद में अचानक दक्षिण की ओर घूमकर समुद्र में गिरती हैं, इसलिए ये नदियां अपने प्रवाह मार्ग में तंग घाटियों का ही निर्माण करती हैं। दूसरी ओर, प्रायद्वीपीय नदियों की घाटियां प्रायः चौड़ी और उथली हैं, क्योंकि यहां का ढाल बहुत कम है।
- प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह-तंत्र अनुगामी है, जबकि हिमालयीय नदियों का अपवाह-तंत्र अनुगामी नही है।
- हिमालयीय नदियां सदाबहार हैं, क्योंकि इनके जल का स्रोत हिमालय के बड़े-बड़े हिमनद हैं। दूसरी ओर, प्रायद्वीपीय भारत की प्रायः अधिकांश नदियां मौसमी हैं। ये नदियां वर्षा ऋतु में जल से भर जाती हैं, परंतु शुष्क मौसम में सूख जाती हैं।
- हिमालयीय नदियां तेज प्रवाह और अधिक गहराई लिए हुए होने के कारण यातयात का मार्ग उपलब्ध कराती हैंं, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ कम गहरी और मौसमी होने के कारण यातायात के अनुकूल नहीं हैं।
- इस प्रकार, इन दो नदी प्रणालियों का अपना-अपना पृथक् स्थलाकृतिक स्वरूप और पृथक्-पृथक् अपवाह प्रणाली है और इसलिए ये दोनों अलग-अलग रूपों में परिलक्षित होती हैं।